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हक़ीक़तों का पता दे के ख़ुद सराब हुआ - रज़ी मुजतबा कविता - Darsaal

हक़ीक़तों का पता दे के ख़ुद सराब हुआ

हक़ीक़तों का पता दे के ख़ुद सराब हुआ

वो मुझ को होश में ला कर ख़याल-ओ-ख़्वाब हुआ

वो अपने लम्स से पत्थर बना गया मुझ को

विसाल उस का मुझे सूरत-ए-अज़ाब हुआ

सरों पे सब के पड़ी हादसों की धूप मगर

कोई सराब बना और कोई सहाब हुआ

अज़ाब सब के मिरे जिस्म-ओ-जाँ पे नक़्श हुए

मिरा वजूद मिरे अहद की किताब हुआ

सुकूत-ए-शहर-ए-सितम से असीर-ए-यास न हो

कि याँ सकूँ से हुआ जो भी इंक़लाब हुआ

वही तो एक हमारा मिज़ाज-दाँ था 'रज़ी'

जो हम से दूर रहा और न दस्तियाब हुआ

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In Hindi By Famous Poet Razi Mujtaba. is written by Razi Mujtaba. Complete Poem in Hindi by Razi Mujtaba. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.