वो जंग मैं ने महाज़-ए-अना पे हारी है
वो जंग मैं ने महाज़-ए-अना पे हारी है
लहू में आज क़यामत की बर्फ़-बारी है
मचा हुआ है बदन में लहू का वावैला
कहीं से कोई कुमक लाओ ज़हर कारी है
ये दिल है या किसी आफ़त-रसीदा शहर की रात
कि जितना शोर था उतना सुकूत तारी है
सदाक़तें हैं अजब इश्क़ के क़बीले की!
उसी से जंग भी ठहरी है जिस से यारी है
वो साथ था तो सभी रास्ते उसी के थे
बिछड़ गया है तो हर रहगुज़र हमारी है
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