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न फ़ासले कोई रखना न क़ुर्बतें रखना - राज़ी अख्तर शौक़ कविता - Darsaal

न फ़ासले कोई रखना न क़ुर्बतें रखना

न फ़ासले कोई रखना न क़ुर्बतें रखना

बस अब ब-क़द्र-ए-ग़ज़ल उस से निस्बतें रखना

ये किस तअल्लुक़-ए-ख़ातिर का दे रहा है सुराग़

कभी कभी तिरा मुझ से शिकायतें रखना

मैं अपने सच को छुपाऊँ तो रूह शोर मचाए

अज़ाब हो गया मेरा समाअतें रखना

फ़ज़ा-ए-शहर में अब के बड़ी कुदूरत है

बहुत सँभाल के अपनी मोहब्बतें रखना

हम अहल-ए-फ़न को भी गुम-नामियाँ थीं रास बहुत

हुआ है बाइस-ए-रुस्वाई शोहरतें रखना

क़सीदा-ख़्वानी करो और मौज उड़ाओ कि 'शौक़'

तमाम कार-ए-ज़ियाँ है सदाक़तें रखना

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In Hindi By Famous Poet Razi Akhtar Shauq. is written by Razi Akhtar Shauq. Complete Poem in Hindi by Razi Akhtar Shauq. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.