कभी ख़ुर्शीद-ए-ज़िया-बार हूँ मैं
कभी ख़ुर्शीद-ए-ज़िया-बार हूँ मैं
कभी साया पस-ए-दीवार हूँ मैं
ये जो कुछ रंग मिरी ज़ात में हैं
कौन समझेगा कि दुश्वार हूँ मैं
ना-रसीदा है अभी मेरी महक
शाख़-ए-नौ-ख़ेज़ दिगर अम्बार हूँ मैं
है कोई नाज़ उठाने वाला
एक टूटा हुआ पिंदार हूँ मैं
लोग यूँ बच के गुज़र जाते हैं
जैसे गिरती हुई दीवार हूँ मैं
मैं ने माना कि बहुत तल्ख़ हूँ 'शौक़'
अपना पैराया-ए-इज़हार हूँ मैं
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