जाने क्या है जिसे देखो वही दिल-गीर लगे
जाने क्या है जिसे देखो वही दिल-गीर लगे
शहर का शहर ही अब मो'तक़िद-ए-मीर लगे
सुब्ह आशुफ़्ता-मिज़ाजों की परेशाँ-ए-सुख़नी
रात इक मार-ए-सियह जैसे इनाँ-गीर लगे
अब तो जिस आँख को देखो वही पथराई हुई
अब तो जिस चेहरे को आवाज़ दो तस्वीर लगे
जाने किस शहर-ए-तिलिस्मात में आ निकला हूँ
अपने क़दमों की सदा हल्क़ा-ए-ज़ंजीर लगे
यही मक़्दूर-ए-मसाफ़त है कि ख़ेमे जल जाएँ
यही मक़्सूम-ए-सफ़र है कि कोई तीर लगे
ज़िंदगी भर जिन्हें जाँ कह के पुकारा गया 'शौक़'
वही सीने से मिरे सूरत-ए-शमशीर लगे
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