अब सफ़र हो तो कोई ख़्वाब-नुमा ले जाए
अब सफ़र हो तो कोई ख़्वाब-नुमा ले जाए
कोई आए मुझे पलकों पे उठा ले जाए
ख़ुद में झूमूँ कभी औरों के लिए लहराऊँ
इस से पहले कि हवा मेरा दिया ले जाए
हाए वो आँख कि जो हर्फ़ सुझाती थी कभी
अब सर-ए-कू-ए-ग़ज़ल कौन बुला ले जाए
उस ने चाहा भी तो किस ज़र्फ़ से चाहा मुझ को
जैसे सीने में कोई हर्फ़-ए-दुआ ले जाए
ज़िंदगी भर का सफ़र हो गई चाहत तेरी
अब जहाँ तक तिरे क़दमों की सदा ले जाए
दिल को धड़का है कि शमएँ ही बुझी थीं पहले
अब के आँधी मिरा ख़ेमा न उड़ा ले जाए
'शौक़' दरियाओं का पिंदार नहीं तुम जैसा
ये जो बिफरे तो भरा शहर बहा ले जाए
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