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महकती आँखों में सोचा था ख़्वाब उतरेंगे - रज़ा मौरान्वी कविता - Darsaal

महकती आँखों में सोचा था ख़्वाब उतरेंगे

महकती आँखों में सोचा था ख़्वाब उतरेंगे

पता न था कि यहाँ भी अज़ाब उतरेंगे

फ़रेब खाएगी हर बार मेरी तिश्ना-लबी

बदन के दश्त पे जब जब सराब उतरेंगे

मिरी लहद पे न रौशन करे चराग़ कोई

ये वो जगह है जहाँ आफ़्ताब उतरेंगे

सफ़ेद-पोशों की कब तक छुपेंगी करतूतें

कि धीरे धीरे सभी के नक़ाब उतरेंगे

नज़र जमाए हैं दहलीज़-ए-इंतिज़ार पे हम

फ़राज़-ए-काबा से इज़्ज़त-मआब उतरेंगे

गुनाह लगती है उल्फ़त तुम्हें तो लगने दो

ये वो गुनाह है जिस पर सवाब उतरेंगे

तमाम होगी तभी तो किताब-ए-ज़ीस्त 'रज़ा'

ग़म-ए-हयात के जब इंतिसाब उतरेंगे

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In Hindi By Famous Poet Raza Mauranvi. is written by Raza Mauranvi. Complete Poem in Hindi by Raza Mauranvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.