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किसी के ज़ख़्म पर अश्कों का फाहा रख दिया जाए - रज़ा मौरान्वी कविता - Darsaal

किसी के ज़ख़्म पर अश्कों का फाहा रख दिया जाए

किसी के ज़ख़्म पर अश्कों का फाहा रख दिया जाए

चलो सूरज के सर पर थोड़ा साया रख दिया जाए

मिरे मालिक सर-ए-शाख़-ए-शजर इक फूल की मानिंद

मिरी बे-दाग़ पेशानी पे सज्दा रख दिया जाए

गुनहगारों ने सोचा है मुसलसल नेकियाँ कर के

शब-ए-ज़ुल्मत के सीने पर उजाला रख दिया जाए

तन-ए-बे-सर हूँ मेरे साए में अब कौन बैठेगा

दरख़्तों में मिरे हिस्से का साया रख दिया जाए

बुलाते हैं हमें मेहनत-कशों के हाथ के छाले

चलो मुहताज के मुँह में निवाला रख दिया जाए

दुआएँ माँगते हैं वो हमारे रिज़्क़ की ख़ातिर

फ़क़ीरों के लिए थोड़ा सा आटा रख दिया जाए

मुझे चलने नहीं देंगे ये मेरे पाँव के छाले

मिरे तलवों के नीचे कोई काँटा रख दिया जाए

रिवाजों की वो कसरत है कि दम घुटने लगा अपना

उठा कर अब 'रज़ा' पारीना क़िस्सा रख दिया जाए

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In Hindi By Famous Poet Raza Mauranvi. is written by Raza Mauranvi. Complete Poem in Hindi by Raza Mauranvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.