वो आँसू जो हँस हँस के हम ने पिए हैं
वो आँसू जो हँस हँस के हम ने पिए हैं
तुम्हारे दिए थे तुम्हारे लिए हैं
करें वो जो चाहें कहें वो जो चाहें
मैं पाबंद-ए-उल्फ़त मिरे लब सिए हैं
तुम्हारे ही रहम ओ करम के सहारे
न मालूम मर मर के क्यूँकर जिए हैं
बड़ी देर तक जिस से पोंछे थे आँसू
वो दामन अभी हाथ ही में लिए हैं
उसे मैं ही समझूँ उसे मैं ही जानूँ
सितम कर रहे हैं करम भी किए हैं
कहाँ पा-ए--नाज़ुक कहाँ राह-ए-उल्फ़त
मिरे साथ दो इक क़दम हो लिए हैं
हँसाता है सब को हमारा फ़साना
हमीं कहते कहते कभी रो लिए हैं
गुल ओ बाग़ ओ नग़्मा मह ओ मेहर ओ अंजुम
जो तुम हो मिरे सब ये मेरे लिए हैं
उठाते वो क्यूँ मिल के बार-ए-मोहब्बत
ये क्या कम है थोड़ा सहारा दिए हैं
भले हैं बुरे हैं किसी से ग़रज़ क्या
'रज़ा' वो बहर-हाल मेरे लिए हैं
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