जो ख़ुद न अपने इरादे से बद-गुमाँ होता

जो ख़ुद न अपने इरादे से बद-गुमाँ होता

क़दम उठाते ही मंज़िल पे कारवाँ होता

फ़रेब दे के तग़ाफ़ुल वबाल-ए-जाँ होता

जो इक लतीफ़ तबस्सुम न दरमियाँ होता

दिमाग़ अर्श पे है तेरे दर की ठोकर से

नसीब होता जो सज्दा तो मैं कहाँ होता

क़फ़स से देख के गुलशन टपक पड़े आँसू

जहाँ नज़र है यहाँ काश आशियाँ होता

हमीं ने उन की तरफ़ से मना लिया दिल को

वो करते उज़्र तो ये और भी गिराँ होता

समझ तो ये कि न समझे ख़ुद अपना रंग-ए-जुनूँ

मिज़ाज ये कि ज़माना मिज़ाज-दाँ होता

भरी बहार के दिन हैं ख़याल आ ही गया

उजड़ न जाता तो फूलों में आशियाँ होता

हसीन क़दमों से लिपटी हुई कशिश थी जहाँ

वहीं था दिल भी 'रज़ा' और दिल कहाँ होता

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In Hindi By Famous Poet Raza Lakhnavi. is written by Raza Lakhnavi. Complete Poem in Hindi by Raza Lakhnavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.