उन की निगाह-ए-नाज़ के क़ाबिल कहें जिसे
उन की निगाह-ए-नाज़ के क़ाबिल कहें जिसे
वो जिंस-ए-मो'तबर हो अता दिल कहें जिसे
शब-ख़ाना-ए-हयात की रौनक़ है आज तक
वो रौशनी फ़रोग़ ग़म-ए-दिल कहें जिसे
क्या ढूँडते हो रह-रव-ए-सरमाया-ए-सुकूँ
मा'दूम है वो नक़्श ही मंज़िल कहें जिसे
ऐ इज़तिराब-ए-मौज-ओ-तलातुम तिरे सिवा
वज्ह-ए-सुकूँ वो कौन है साहिल कहें जिसे
दीवानगी-ए-अहल-ए-जुनूँ पर न जाइए
शाइस्ता-ए-यक़ीं है वो ग़ाफ़िल कहें जिसे
मेराज जिस को कहते हैं सहरा-ए-इश्क़ की
वो है बगूला आज भी महमिल कहें जिसे
ग़ुंचों पे क्या गुज़र गई सुन कर ये क्या ख़बर
वो लय ख़रोश-ए-क़ल्ब-ए-अनादिल कहें जिसे
मम्नून-ए-इल्तिफ़ात भी अक्सर हुआ हूँ मैं
उस चश्म-ए-नीम-बाज़ का क़ातिल कहें जिसे
मिलता कहाँ है ऐ 'रज़ा' बे-शोरिश-ए-जुनूँ
ऐसा सुकूत गर्मी-ए-महफ़िल कहें जिसे
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