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मकीं और भी हैं मकाँ और भी हैं - रज़ा जौनपुरी कविता - Darsaal

मकीं और भी हैं मकाँ और भी हैं

मकीं और भी हैं मकाँ और भी हैं

यही दो-जहाँ क्या जहाँ और भी हैं

मक़ामात-ए-दैर-ओ-हरम से गुज़र कर

तिरी अज़्मतों के निशाँ और भी हैं

किए जाइए सई-ए-तस्ख़ीर-ए-फ़ितरत

अभी राज़-हा-ए-निहाँ और भी हैं

ज़रा ख़त्म हो कर तौक़-ओ-सलासिल

ज़बाँ पर लिए दास्ताँ और भी हैं

मिटा दो मिरा नक़्श-ए-हस्ती नहीं ग़म

मिरी ज़िंदगी के निशाँ और भी हैं

समेट अपना दामन न आग़ोश-ए-मंज़िल

कि रहरव पस-ए-कारवाँ और भी हैं

नहीं सिर्फ़ ज़ाहिद ही जल्वों का महरम

तिरे हुस्न के राज़दाँ और भी हैं

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In Hindi By Famous Poet Raza Jaunpuri. is written by Raza Jaunpuri. Complete Poem in Hindi by Raza Jaunpuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.