क्या पूछते हो मुझ को मोहब्बत में क्या मिला
क्या पूछते हो मुझ को मोहब्बत में क्या मिला
दोनों-जहाँ का दर्द ब-नाम-ए-ख़ुदा मिला
शायद यही है हासिल-ए-पायान-ए-आरज़ू
अपना पता नहीं है जो उन का पता मिला
अफ़्साना-ए-हयात की तकमील हो गई
जब उन के सिलसिले से मिरा सिलसिला मिला
जब से नहीं वो नग़्मा-ज़न-ए-साज़-ए-ज़िंदगी
इक एक तार दिल का मुझे बे-सदा मिला
तुम क्या मिले मिज़ा के ज़िया-बार कू-ब-कू
पर्दे में शब के सुब्ह का रू-ए-सफ़ा मिला
हर आरज़ू की एक वही जान-ए-आरज़ू
हर मुद्दआ' का एक वही मुद्दआ' मिला
वज्ह-ए-दवाम फ़ितरत-ए-ग़म ही नहीं फ़क़त
दिल भी अज़ल-तराज़ अबद-आश्ना मिला
कैसी बहार मौजा-ए-कैफ़-ओ-निशात क्या
पहलु-ए-गुल न दामन-ए-बाद-ए-सबा मिला
जन्नत चमक चमक उठी रंग-ओ-जमाल की
किस गुल की आरज़ू का शरफ़ ऐ 'रज़ा' मिला
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