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ज़ख़्म कुछ ऐसे मिरे क़ल्ब-ओ-जिगर ने पाए - रज़ा हमदानी कविता - Darsaal

ज़ख़्म कुछ ऐसे मिरे क़ल्ब-ओ-जिगर ने पाए

ज़ख़्म कुछ ऐसे मिरे क़ल्ब-ओ-जिगर ने पाए

उम्र भर जो किसी उनवान न भरने पाए

हम ने अश्कों के चराग़ों से सजा लीं पलकें

कि तिरे दर्द की बारात गुज़रने पाए

उस से क्या पूछते हो फ़लसफ़ा-ए-मौत-ओ-हयात

कि जो ज़िंदा भी रहे और न मरने पाए

इस लिए कम-नज़री का भी सितम सहना पड़ा

तुझ पे महफ़िल में कोई नाम न धरने पाए

पास-ए-आदाब-ए-वफ़ा था कि शिकस्ता-पाई

बे-ख़ुदी में भी न हम हद से गुज़रने पाए

अपने जज़्बात के बिफरे हुए तूफ़ाँ में 'रज़ा'

इस तरह डूबे कि फिर हम न उभरने पाए

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In Hindi By Famous Poet Raza Hamdani. is written by Raza Hamdani. Complete Poem in Hindi by Raza Hamdani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.