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सहरा-ए-ख़याल का दिया हूँ - रज़ा हमदानी कविता - Darsaal

सहरा-ए-ख़याल का दिया हूँ

सहरा-ए-ख़याल का दिया हूँ

वीराना-ए-शब में जल रहा हूँ

साग़र की तरह से चूर हो कर

महफ़िल में बिखर बिखर गया हूँ

अपने ही लहू की रौशनी में

नैरंग-ए-जहाँ को देखता हूँ

वो चाँद हूँ गर्दिशों में आ कर

ख़ुद अपनी नज़र से कट गया हूँ

हर अहद है मेरे दम से रंगीन

मैं नग़मा-ए-साज़-ए-इर्तिक़ा हूँ

आईना-सिफ़त नज़र से तेरी

अक्स-ए-दर-ओ-बाम बन गया हूँ

एहसास की तल्ख़ियों में ढल कर

मैं दर्द का चाँद बन गया हूँ

सुन लो मुझे मै-कदा-परस्तो!

भीगी हुई रात की सदा हूँ

गुलज़ार में रह के भी 'रज़ा' मैं

ख़ुश्बू के लिए तरस गया हूँ

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In Hindi By Famous Poet Raza Hamdani. is written by Raza Hamdani. Complete Poem in Hindi by Raza Hamdani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.