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जुनूँ का राज़ मोहब्बत का भेद पा न सकी - रज़ा हमदानी कविता - Darsaal

जुनूँ का राज़ मोहब्बत का भेद पा न सकी

जुनूँ का राज़ मोहब्बत का भेद पा न सकी

हमारा साथ ये दुनिया मगर निभा न सकी

बिखर गया हूँ फ़ज़ाओं में बू-ए-गुल की तरह

मिरे वजूद में वुसअत मिरी समा न सकी

हर इक क़दम पे सलीब-आश्ना मिले मुझ को

ये काएनात वफ़ाओं का बार उठा न सकी

पटक के रह गई सर अपना रहगुज़ारों से

मिरी सदा दिल-ए-कोहसार में समा न सकी

खुली हवा की फ़सीलों में ज़िंदगी है असीर

फ़रेब-ए-रंग से माहौल को बसा न सकी

रज़ा तुलू-ए-सहर तक है ज़िंदगी शब की

ये बात अहल-ए-सितम की समझ में आ न सकी

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In Hindi By Famous Poet Raza Hamdani. is written by Raza Hamdani. Complete Poem in Hindi by Raza Hamdani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.