सौ ग़म्ज़े के रखता है निगहबान पस-ओ-पेश
आता है अकेला पर अकेला नहीं आता
Parveen Shakir
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Anwar Masood
Javed Akhtar
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Habib Jalib
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लाज़िम है बुलंद आह की रायत न करे तू
ग़ैरों का उस तरफ़ से गुज़ारा न जाएगा
आरज़ू-ए-विसाल में सब हैं
सुनते तो थे 'रज़ा' हैं सब हैं बड़े मुसलमाँ
ज़ुल्फ़ खोले था कहाँ अपनी वो फिर बेबाक रात
हर नफ़स मूरिद-ए-सफ़र हैं हम
मुझ को जो कहते हो म्याँ तुम हो कहाँ तुम हो कहाँ
अब्र के बिन देखे हरगिज़ ख़ुश दिल-ए-मस्ताँ न हो
तबीब देख के मुझ को दवा न कुछ बोला
ऐसा किसी से जुनूँ दस्त-ओ-गरेबाँ न हो
रफ़ू फिर कीजियो पैराहन-ए-यूसुफ़ को ऐ ख़य्यात
हाथ उस के न आया दामन-ए-नाज़