ख़ुशा हो कर बुताँ कब आशिक़ों को याद करते हैं
'रज़ा' हैराँ हूँ मैं किस बात पर है उतना भोला तू
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अब्र है अब्र है शराब शराब
वबाल-ए-जान हर इक बाल है म्याँ
गुल-ए-उश्शाक़ रंग-ए-बाख़्ता है
मुझ को जो कहते हो म्याँ तुम हो कहाँ तुम हो कहाँ
ऐसा किसी से जुनूँ दस्त-ओ-गरेबाँ न हो
मौत भी आती नहीं हिज्र के बीमारों को
जिस तरह हम रहे दुनिया में हैं उस तरह 'रज़ा'
ग़ैरों का उस तरफ़ से गुज़ारा न जाएगा
गर गरेबाँ सिया तो क्या नासेह
क्या कहें अपनी सियह-बख़्ती ही का अंधेर है
हर नफ़स मूरिद-ए-सफ़र हैं हम