जिस तरह हम रहे दुनिया में हैं उस तरह 'रज़ा'
शैख़ बुत-ख़ाने में काबे में बरहमन न रहा
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Habib Jalib
Rahat Indori
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Gulzar
Wasi Shah
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(514) Peoples Rate This
या फ़क़ीरी है या कि शाही है
हम को मिली है इश्क़ से इक आह-ए-सोज़-नाक
ग़ैरों का उस तरफ़ से गुज़ारा न जाएगा
अब तो तुम भी जवाँ हुए हो देखेंगे दिल को बचाओगे तुम
उस घड़ी कुछ थे और अब कुछ हो
काबा ओ दैर जिधर देखा उधर कसरत है
गुल-ए-उश्शाक़ रंग-ए-बाख़्ता है
सब कुछ पढ़ाया हम को मुदर्रिस ने इश्क़ के
क्या कहें अपनी सियह-बख़्ती ही का अंधेर है
अब्र के बिन देखे हरगिज़ ख़ुश दिल-ए-मस्ताँ न हो
ख़ुशा हो कर बुताँ कब आशिक़ों को याद करते हैं
शर्मिंदा नहीं कौन तिरी इश्वा-गरी का