इस चश्म ओ दिल ने कहना न माना तमाम उम्र
हम पर ख़राबी लाई ये घर ही की फूट-फाट
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वबाल-ए-जान हर इक बाल है म्याँ
लाज़िम है बुलंद आह की रायत न करे तू
मुझ को जो कहते हो म्याँ तुम हो कहाँ तुम हो कहाँ
तबीब देख के मुझ को दवा न कुछ बोला
काबा ओ दैर जिधर देखा उधर कसरत है
किस तरह 'रज़ा' तू न हो धवाने ज़माना
सब कुछ पढ़ाया हम को मुदर्रिस ने इश्क़ के
यारब तू उस के दिल से सदा रखियो ग़म को दूर
काबे में शैख़ मुझ को समझे ज़लील लेकिन
ऐसा किसी से जुनूँ दस्त-ओ-गरेबाँ न हो
यार को बेबाकी में अपना सा हम ने कर लिया
या फ़क़ीरी है या कि शाही है