उस चश्म ने कि तूतियों को नुक्ता-दाँ किया
उस चश्म ने कि तूतियों को नुक्ता-दाँ किया
ऐसी कि इक निगह कि मुझे बे-ज़बाँ किया
घबराऊँ किस तरह दिल-ए-पुर-आह से न मैं
उस सोख़्ता ने अब तो निहायत धुआँ किया
हाल उस ने पूछा जब न रही ताक़त-ए-बयाँ
इस पूछने ने और मुझे बे-ज़बाँ किया
यारब तू उस के दिल से सदा रखियो ग़म को दूर
जिस ने किसी के दिल को कभी शादमाँ किया
नैरंग बे-सबाती का है इस चमन का रंग
बुलबुल ने क्या समझ के यहाँ आशियाँ किया
मज़मून-ए-ख़त उसी से है ज़ाहिर कि होगा क्या
क़ासिद की जा जो अश्क को हम ने रवाँ किया
गह इश्वा गह करिश्मा गहे नाज़ गह अदा
किस किस तरह से उस ने मुझे इम्तिहाँ किया
ख़ूबों को हम-नशीं तू कभी दिल न दीजियो
मैं इस मुआ'मले में बहुत साज़ियाँ किया
मजनूँ का इश्क़ सच है प मौज़ूनों ने 'रज़ा'
ज़र्रा सी बात थी उसे इक दास्ताँ किया
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