सच कह 'रज़ा' ये किस से लगाई है साट-बाट

सच कह 'रज़ा' ये किस से लगाई है साट-बाट

कुछ फिर है इन दिनों में तिरा जी निपट उचाट

देखेंगे क्यूँ के चश्मों से जाते रहोगे तुम

लख़्त-ए-जिगर की चौकी बिठाई है घाट घाट

टुकड़े चुने हैं दिल के जो आँखों के ख़्वान हैं

है किस के मेहमानी का ऐ मर्दुमाँ ये ठाट

अपनी गली के आने से मुझ को न मनअ' कर

बद-नाम हो गे बंद करेगा जो राह बाट

उस चश्म-ओ-दिल ने कहना न माना तमाम उम्र

हम पर ख़राबी लाई ये घर ही की फूट-फाट

रहने दे अपनी बज़्म में कुछ बोलूँ मैं अगर

मानिंद-ए-शम्अ' फिर वहीं मेरी ज़बाँ को काट

अब इस गली में आता जो है हर घड़ी 'रज़ा'

कुछ तो मिली है वाँ से तुझे मेरी बाट चाट

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In Hindi By Famous Poet Raza Azimabadi. is written by Raza Azimabadi. Complete Poem in Hindi by Raza Azimabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.