निकल मत घर से तू ऐ ख़ाना-आबाद
निकल मत घर से तू ऐ ख़ाना-आबाद
किया अब हम ने भी वीराना आबाद
क़ुबूल होगा कहीं तो सज्दा अपना
रहें ये काबा ओ बुत-ख़ाना आबाद
हमारा ही रहे इक जाम ख़ाली
मुग़ाँ रहियो तिरा मय-ख़ाना आबाद
रहे उस ज़ुल्फ़ से ये दिल परेशाँ
तिरा घर होवे यूँ ऐ शाना आबाद
'रज़ा' लूटा है किस सफ़्फ़ाक ने आ
कभी दिल को तिरे देखा न आबाद
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