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मुझ को जो कहते हो म्याँ तुम हो कहाँ तुम हो कहाँ - रज़ा अज़ीमाबादी कविता - Darsaal

मुझ को जो कहते हो म्याँ तुम हो कहाँ तुम हो कहाँ

मुझ को जो कहते हो म्याँ तुम हो कहाँ तुम हो कहाँ

दिल कहाँ है पास मेरे मेरी जाँ तुम हो कहाँ

वो गली है या परी-ख़ाना है या फ़िरदौस है

सच कहो ऐ हमदमो मैं हूँ कहाँ तुम हो कहाँ

अपने से अपना न हो काम औरों से रखिए उमीद

क्या वसिय्यत करते हो ऐ दोस्ताँ तुम हो कहाँ

गुल खिलेंगे बार बार और आएगी हिर-फिर बहार

है हमेशा सैर-ए-गुलज़ार-ए-जहाँ तुम हो कहाँ

जब जवानी गई रहा क्या आना जाना सब गया

आओ जाने दो वो बातें ऐ मियाँ तुम हो कहाँ

देखने का चाव ये ऐनक उतरती ही नहीं

देखो तुम अपनी तरफ़ ऐ मेहरबाँ तुम हो कहाँ

पूछते हैं हाल तो मुँह देख रहते हो 'रज़ा'

दिल कहीं और ही है सुनते हो मियाँ तुम हो कहाँ

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In Hindi By Famous Poet Raza Azimabadi. is written by Raza Azimabadi. Complete Poem in Hindi by Raza Azimabadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.