मेरे नाले पर नहीं तुझ को तग़ाफ़ुल के सिवा
मेरे नाले पर नहीं तुझ को तग़ाफ़ुल के सिवा
गुल नहीं सुनता किसी का शोर-ए-बुलबुल के सिवा
तुम जो कुछ चाहो करो जौर-ओ-इताब-ओ-ख़श्म-ओ-नाज़
कुछ नहीं बनता है आशिक़ से तहम्मुल के सिवा
जो सुख़न-रस आश्ना हैं ज़ुल्फ़-ओ-काकुल के तिरी
उन को मज़मूँ भी नहीं मिलता है सुम्बुल के सिवा
किस तरह मुझ से जुदाई तुझ को आती है पसंद
क़ाफ़िया गुल का नहीं ठहरे है बुलबुल के सिवा
वास्ते मूसा के सुर्मा तूर का है ऐ 'रज़ा'
मैं न दूँ आँखों में ख़ाक-ए-पा-ए-दुलदुल के सिवा
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