गुल-ए-उश्शाक़ रंग-ए-बाख़्ता है
सर्व अपने चमन का फ़ाख़्ता है
आतिश-ए-ग़म से आब संग हुए
अश्क आईना-ए-गुदाख़ता है
इश्क़ बाला है हुस्न-ए-सरकश से
साया-ए-सर्व बाल-ए-फ़ाख़्ता है
कोई कहता असीर-ए-साग़र को
हिन्द में भी हुआ मराख़ता है
देख सौदा 'रज़ा' का दीवाने
तेरा मजनूँ जुनूँ-ए-साख़्ता है