अब्र है अब्र है शराब शराब
साक़िया साक़िया शिताब शिताब
नामा लिखता हूँ और कहे है शौक़
क़ासिदा क़ासिदा जवाब जवाब
यार बिन अपनी ज़िंदगी ऐ ख़िज़्र
मौत है मौत है अज़ाब अज़ाब
ये 'रज़ा' ने ग़ज़ल कही इस का
शाइराँ शाइराँ जवाब जवाब
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रफ़ू फिर कीजियो पैराहन-ए-यूसुफ़ को ऐ ख़य्यात
क्या कहें अपनी सियह-बख़्ती ही का अंधेर है
सच कह 'रज़ा' ये किस से लगाई है साट-बाट
निकल मत घर से तू ऐ ख़ाना-आबाद
टुक बैठ तू ऐ शोख़-ए-दिल-आराम बग़ल में
अब्र के बिन देखे हरगिज़ ख़ुश दिल-ए-मस्ताँ न हो
बुतों को फ़ाएदा क्या है जो हम से जंग करते हैं
इलाही चश्म-ए-बद उस से तू दूर ही रखियो
मैं ही नहीं हूँ बरहम उस ज़ुल्फ़-ए-कज-अदा से
टुक तू महमिल का निशाँ दे जल्द ऐ सूरत ज़रा
जिस तरह हम रहे दुनिया में हैं उस तरह 'रज़ा'
शर्मिंदा नहीं कौन तिरी इश्वा-गरी का