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ज़हर-ए-चश्म-ए-साक़ी में कुछ अजीब मस्ती है - रविश सिद्दीक़ी कविता - Darsaal

ज़हर-ए-चश्म-ए-साक़ी में कुछ अजीब मस्ती है

ज़हर-ए-चश्म-ए-साक़ी में कुछ अजीब मस्ती है

ग़र्क़ कुफ़्र ओ ईमाँ हैं दौर-ए-मय-परस्ती है

शम्अ है सर-ए-महफ़िल कुछ कहा नहीं जाता

शोला-ए-ज़बाँ ले कर बात को तरसती है

ज़ुल्फ़-ए-यार की ज़द में दैर भी है काबा भी

ये घटा जब उठती है दूर तक बरसती है

आज अपनी महफ़िल में है बला का सन्नाटा

दर्द है न तस्कीं है होश है न मस्ती है

कौन जा के समझाए ख़ुद-परस्त दुनिया को

क्या सनम-परस्ती है क्या ख़ुदा-परस्ती है

सख़्त जान-लेवा है सादगी मोहब्बत की

ज़हर की कसौटी पर ज़िंदगी को कसती है

हम तो रह के दिल्ली में ढूँडते हैं दिल्ली को

पूछिए 'रविश' किस से क्या यही वो बस्ती है

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In Hindi By Famous Poet Ravish Siddiqi. is written by Ravish Siddiqi. Complete Poem in Hindi by Ravish Siddiqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.