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सवाल-ए-इश्क़ पर ता-हश्र चुप रहना पड़ा मुझ को - रविश सिद्दीक़ी कविता - Darsaal

सवाल-ए-इश्क़ पर ता-हश्र चुप रहना पड़ा मुझ को

सवाल-ए-इश्क़ पर ता-हश्र चुप रहना पड़ा मुझ को

हर इक इल्ज़ाम को हँसते हुए सहना पड़ा मुझ को

कभी मग़रूर तूफ़ानों को भी ठुकरा दिया मैं ने

कभी इक मौज-ए-ग़म के साथ ही बहना पड़ा मुझ को

सुकून-ए-दिल बड़ी दौलत सही ऐ हम-नशीं लेकिन

सुकूँ पा कर भी अक्सर मुज़्तरिब रहना पड़ा मुझ को

ज़माना किस क़दर बे-गाना-ए-रस्म-ए-मोहब्बत था

यहाँ तो ख़ुद से भी ना-आश्ना रहना पड़ा मुझ को

'रविश' इस बज़्म-ए-रंगीं में सुकूत-ए-ग़म का अफ़्साना

कहा जाता न था मुझ से मगर कहना पड़ा मुझ को

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In Hindi By Famous Poet Ravish Siddiqi. is written by Ravish Siddiqi. Complete Poem in Hindi by Ravish Siddiqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.