इश्क़ दुश्वार नहीं ख़ुश-नज़री मुश्किल है
इश्क़ दुश्वार नहीं ख़ुश-नज़री मुश्किल है
सहल है कोह-कनी शीशागरी मुश्किल है
उस में शामिल है मिरा हुस्न-ए-तलब भी ऐ दोस्त
वर्ना इस हुस्न से बेदाद-गरी मुश्किल है
लग गई दामन-ए-गेसू-ए-परेशाँ की हवा
होश में आए नसीम-ए-सहरी मुश्किल है
मसनद-ए-लाला-ओ-रैहाँ हो कि हो तख़्ता-ए-दार
हम-नशीं चारा-ए-आशुफ़्ता-सरी मुश्किल है
ये हक़ीक़त कोई अरबाब-ए-ख़बर से पूछे
किस क़दर मरहला-ए-बे-ख़बरी मुश्किल है
दिल-ए-बेदार का अब और ही आलम है 'रविश'
लब तक आ जाए फ़ुग़ान-ए-सहरी मुश्किल है
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