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अफ़्लाक गूँगे हैं - रविश नदीम कविता - Darsaal

अफ़्लाक गूँगे हैं

मगर ये आरज़ू कब थी

कि हम अफ़्लाक के फ़रमान की सूली पे जा लटकें

तो आख़िर किस लिए वक़्त-ओ-मकाँ की घाटियाँ उतरें

बना कर मरक़दों को दर-ए-अदम के आसमाँ की ख़ाक छानीं

और फिर जीवन के मौसम को असीरी का कफ़न ओढें

मगर इन सब सवालों के जवाबों से बहुत पहले

नया दिन सूरजों पर बैठ कर

खिड़की के रस्ते ख़्वाब-ज़ारों में उतरता है

हम अपने टुथ-ब्रश मुँह में लिए और तोलिए को हाथ में थामे

फिर इक जब्र-ए-मुसलसल के लिए तय्यार होते हैं

घड़ी के साज़ पर कैलेंडरों के सफ़्हे कितने हैं

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In Hindi By Famous Poet Ravish Nadeem. is written by Ravish Nadeem. Complete Poem in Hindi by Ravish Nadeem. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.