धुँद में लिपटे हुए मंज़र बहुत अच्छे लगे
धुँद में लिपटे हुए मंज़र बहुत अच्छे लगे
टिमटिमाती रौशनी में घर बहुत अच्छे लगे
ज़िंदगी के रास्तों पर रेंगते लोगों के बीच
सर उठाते बोलते कुछ सर बहुत अच्छे लगे
बर्फ़-ज़ारों से उतरते झूमते दरियाओं में
पानियों को रोकते पत्थर बहुत अच्छे लगे
आज भी बाक़ी हैं जिन से इस नगर की रौनक़ें
दाएरों के बीच वो मेहवर बहुत अच्छे लगे
ज़िंदगी तेरी अना को रौंद कर आते हुए
बादशाह-ए-वक़्त को लश्कर बहुत अच्छे लगे
मान कर भी तुम ने हम को उम्र भर माना नहीं
क्या हुआ है आज हम मर कर बहुत अच्छे लगे
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