जिस तरह अश्क चश्म-ए-तर से गिरे
यूँ ही हम आप की नज़र से गिरे
बे-तकल्लुफ़ गले लगा लें हम
काश ख़ंजर तिरी कमर से गिरे
रुख़ से टपके जो क़त्र-हा-ए-अरक़
फूल से दामन-ए-सहर से गिरे
न तो सय्याद है न कुंज-ए-क़फ़स
कहीं बिजली में अब्र-ए-तर से गिरे
देख कर शक्ल उन की ऐ 'रौनक़'
महर-ओ-मह भी मिरी नज़र से गिरे