दिन को हाँ कह दिया तो रात नहीं
आप की बात को सबात नहीं
हिज्र में दिन तो कट ही जाता है
नहीं कटती तो एक रात नहीं
क्यूँ न अख़्लाक़ से बरी हो कलाम
शेर लिखते हैं कुछ लुग़ात नहीं
क्यूँ हिरासाँ हूँ मैं दम-ए-मुश्किल
क्या वो हल्लाल-ए-मुश्किलात नहीं
एक बोसा की अर्ज़ पर 'रौनक़'
कह गया यार पाँच सात नहीं