आलम में न कुछ कसरत-ए-अनवार को देखें
आलम में न कुछ कसरत-ए-अनवार को देखें
पर्दे में नज़र-बाज़ रुख़-ए-यार को देखें
हैरत से मिरे देखने को देखते हैं क्या
देखें तो वो अपने लब ओ रुख़्सार को देखें
रहने दें मुझे गर्म-ए-फ़ुग़ाँ कूचे में अपने
अपनी भी वो कुछ गर्मी-ए-बाज़ार को देखें
वो उस से ज़ियादा है तो ये उस से ज़ियादा
गुफ़्तार सुनें उस की कि रफ़्तार को देखें
हैं ज़ुल्फ़ ओ रुख़ ऐ शोख़ तिरे क़ातिल-ए-आलम
काफ़िर ही को देखें न ये दीं-दार को देखें
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