उम्र भर पेश-ए-नज़र माह-ए-तमाम आते रहे
उम्र भर पेश-ए-नज़र माह-ए-तमाम आते रहे
चंद चेहरे आईना-ख़ाने के काम आते रहे
चंद क़तरे भी न टपके ख़्वाहिशों की रेत पर
कैसे कैसे अब्र थे बाला-ए-बाम आते रहे
मेरे माज़ी के उफ़ुक़ पर चंद जुगनू थे कि जो
हाल की तीरा-शबी में मेरे काम आते रहे
मैं हवस के गिर्द चाहत का हुनर बनता रहा
उस के ख़त मेरी वफ़ादारी के नाम आते रहे
हाए वो शीरीं तमन्ना और वो तिफ़्लाना ख़ू
हम सदा जिस के लिए ख़ुद ज़ेर-ए-दाम आते रहे
तुम हिसार-ए-वक़्त में सूरज बने बैठे रहे
और गर्दिश के लिए ख़ुद सुब्ह ओ शाम आते रहे
उम्र भर ख़्वाबों की मंज़िल का सफ़र जारी रहा
ज़िंदगी भर तजरबों के ज़ख़्म काम आते रहे
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