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रात की सारी हक़ीक़त दिन में उर्यां हो गई - रौनक़ रज़ा कविता - Darsaal

रात की सारी हक़ीक़त दिन में उर्यां हो गई

रात की सारी हक़ीक़त दिन में उर्यां हो गई

ख़्वाब की ताबीर पढ़ कर आँख हैराँ हो गई

हर नफ़्स सैल-ए-हवादिस हर क़दम अमवाज-ए-ग़म

ज़िंदगी इस दौर में तूफ़ाँ ही तूफ़ाँ हो गई

आरज़ू-दर-आरज़ू बढ़ती गईं महरूमियाँ

हर तमन्ना रफ़्ता रफ़्ता दुश्मन-ए-जाँ हो गई

कितनी बे-मअ'नी रिफ़ाक़त अब्र के टुकड़ों में थी

देख कर मेरे घरौंदे बर्क़-ओ-बाराँ हो गई

वो तिरे बचपन की चिंगारी भी थी मौसम-शनास

जब जवाँ होने के दिन आए फ़रोज़ाँ हो गई

सोज़-ए-दिल दर्द-ए-जिगर ख़ून-ए-तमन्ना अश्क-ए-ग़म

एक लग़्ज़िश कितने अफ़्सानों का उनवाँ हो गई

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In Hindi By Famous Poet Raunaq Raza. is written by Raunaq Raza. Complete Poem in Hindi by Raunaq Raza. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.