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भूली-बिसरी ख़्वाहिशों का बोझ आँखों पर न रख - रौनक़ रज़ा कविता - Darsaal

भूली-बिसरी ख़्वाहिशों का बोझ आँखों पर न रख

भूली-बिसरी ख़्वाहिशों का बोझ आँखों पर न रख

ख़ूब-सूरत आईनों में ग़म का पस-मंज़र न रख

देख बढ़ कर शोख़ियाँ मौजों की और क़िस्मत का खेल

कश्तियाँ दरिया के संजीदा किनारों पर न रख

या तो उड़ जा साथ ले कर क़ैद की मजबूरियाँ

वर्ना अपनी जुरअतों का नाम बाल-ओ-पर न रख

हम तो सर रखते हैं सज्दों के लिए मजबूर हैं

तू अगर सज्दों का क़ातिल है तो संग-ए-दर न रख

देने वाले सर दिया है तो कोई सौदा अभी दे

वर्ना इन काँधों पे ये बेकार बार-ए-सर न रख

बेवफ़ाई की अलामत बन चुके असनाम सब

दिल के बुत-ख़ाने में 'रौनक़' अब कोई पत्थर न रख

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In Hindi By Famous Poet Raunaq Raza. is written by Raunaq Raza. Complete Poem in Hindi by Raunaq Raza. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.