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दरवाज़ा मायूस है शायद सोग में है अँगनाई बहुत - रौनक़ नईम कविता - Darsaal

दरवाज़ा मायूस है शायद सोग में है अँगनाई बहुत

दरवाज़ा मायूस है शायद सोग में है अँगनाई बहुत

इक मुद्दत पर अपने घर की आई तो याद आई बहुत

मैं क्या जानूँ भेद है कैसा पूछो घाट के पत्थर से

धीरे धीरे आख़िर कैसे जम जाती है काई बहुत

पूरब पच्छिम उत्तर दक्खिन हर जानिब है एक ही हाल

कोई भी मौसम हो ग़म की चलती है पुर्वाई बहुत

अंधे बहरे गूँगे साए ख़ाक मिरे काम आएँगे

आवाज़ों के इस जंगल में डसती है तन्हाई बहुत

कहती हैं कुछ और लकीरें लफ़्ज़ों का मफ़्हूम है और

चाहे जो भी नक़्श हो इस में होती है गहराई बहुत

प्यार शराफ़त हमदर्दी ईसार वफ़ा सच्चाई ख़ुलूस

'रौनक़' ये वो लफ़्ज़ हैं जिन से होती है रुस्वाई बहुत

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In Hindi By Famous Poet Raunaq Naeem. is written by Raunaq Naeem. Complete Poem in Hindi by Raunaq Naeem. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.