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नियाज़-आगीं है और नाज़-आफ़रीं भी - रौनक़ दकनी कविता - Darsaal

नियाज़-आगीं है और नाज़-आफ़रीं भी

नियाज़-आगीं है और नाज़-आफ़रीं भी

अगर सज्दे में झुक जाए जबीं भी

हक़-आगाही से उठ जाएँगे पर्दे

नज़र हो नुक्ता-रस भी नुक्ता-चीं भी

दिलों में चाहिए वुसअ'त-निगाही

बदल जाती है चश्म-ए-ख़शमगीं भी

हक़ाएक़ पर जमी है गर्द-ए-बातिल

है गुम वहमों में एहसास-ए-यक़ीं भी

सलामत उन का दामन बे-ख़ुदी में

लिया है हम ने कार-ए-आस्तीं भी

उजाले हैं मिरे क़ल्ब-ओ-नज़र के

ये मेहर-ए-ज़ौ-फ़िशाँ माह-ए-मुबीं भी

ब-फ़ैज़-ए-तल्ख़ी-ए-हालात 'रौनक़'

इबारत ज़हर से है अंग्बीं भी

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In Hindi By Famous Poet Raunaq Deccani. is written by Raunaq Deccani. Complete Poem in Hindi by Raunaq Deccani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.