इन आँखों में बसा कोई ज़ोहरा-जबीं है अब
इन आँखों में बसा कोई ज़ोहरा-जबीं है अब
मुज़्तर कुछ ऐसा दिल है ठहरता नहीं है अब
बचपन ही से थे रश्क-ए-हसीनान-ए-दिल-फ़रेब
अहद-ए-शबाब उन का ग़ज़ब दिल-नशीं है अब
दिलदार मेरे हाँ से बहुत मुश्तइ'ल गया
ऐ दिल समझ ले ख़ैर अदू की नहीं है अब
आशिक़ तुम्हारा कहते हैं देखा नहीं कभी
या'नी तुम्हारी याद में ख़लवत-गुज़ीं है अब
काफ़ी है तेरे हाथ का छल्ला यही मुझे
कुछ ख़ातिम-ए-सुलैमाँ की हसरत नहीं है अब
अफ़्साना मेरा सुन के पशेमाँ है चश्म-ए-यार
किस दर्जा ख़शमगीं थी मगर शर्मगीं है अब
क्या जाने यारो किस के तसव्वुर में खो गया
देखा 'जलाली' हम ने सरापा हज़ीं है अब
(535) Peoples Rate This