बहुत रुस्वा क्या इस आशिक़ी ने हर गली मुझ को

बहुत रुस्वा क्या इस आशिक़ी ने हर गली मुझ को

लिए फिरती रही हर जा ये मेरी बेकसी मुझ को

छुपाए से नहीं छुपती हक़ीक़त खुल ही जाती है

सर-ए-बाज़ार ले आई मिरी दीवानगी मुझ को

ख़बर क्या थी यही इक दिन क़यामत मुझ पे ढाएगी

पसंद आई थी बचपन में तिरी ये सादगी मुझ को

निगाह-ए-नाज़ ने उन की मुझे इक अरमुग़ाँ बख़्शा

मिला दरबार-ए-उल्फ़त से शुऊर-ए-ज़िंदगी मुझ को

दिल-ओ-जान-ओ-जिगर क़ुर्बान मैं ने कर दिए सारे

रुलाती ही रही अक्सर तिरी बेगानगी मुझ को

'जलाली' जादा-ए-उलफ़त में जब से है क़दम रक्खा

रही उन के तसव्वुर में हमेशा बेकली मुझ को

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In Hindi By Famous Poet Rauf Yasin Jalali. is written by Rauf Yasin Jalali. Complete Poem in Hindi by Rauf Yasin Jalali. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.