यूँही हँसते हुए छोड़ेंगे ग़ज़ल की महफ़िल
एक आँसू से ज़ियादा कोई रोने का नहीं
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Gulzar
Allama Iqbal
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Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Rahat Indori
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Faiz Ahmad Faiz
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हर मौसम में ख़ाली-पन की मजबूरी हो जाओगे
जितना पाता हूँ गँवा देता हूँ
बहुत ख़ूबियाँ हैं हवस-कार दिल में
कोई ज़ख़्म खुला तो सहने लगे कोई टीस उठी लहराने लगे
रौशनी होने लगी है मुझ में
जो भी कुछ अच्छा बुरा होना है जल्दी हो जाए
वो तो नहीं मिला है साँसों जिए तो क्या है
तुम भी इस सूखते तालाब का चेहरा देखो
ये मिरी रूह सियह रात में निकली है कहाँ
नाश्ते पर जिसे आज़ाद किया है मैं ने
वो ये कहते हैं सदा हो तो तुम्हारे जैसी