उस का ख़याल आते ही मंज़र बदल गया
उस का ख़याल आते ही मंज़र बदल गया
मतला सुना रहा था कि मक़्ता फिसल गया
बाज़ी लगी हुई थी उरूज-ओ-ज़वाल की
मैं आसमाँ-मिज़ाज ज़मीं पर मचल गया
चारों तरफ़ उदास सफ़ेदी बिखर गई
वो आदमी तो शहर का मंज़र बदल गया
तुम ने जमालियात बहुत देर से पढ़ी
पत्थर से दिल लगाने का मौक़ा निकल गया
सारा मिज़ाज नूर था सारा ख़याल नूर
और इस के बावजूद शरारे उगल गया
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