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उमूद हो के उफ़ुक़ में बदल रहे हैं सुतून - रउफ़ ख़लिश कविता - Darsaal

उमूद हो के उफ़ुक़ में बदल रहे हैं सुतून

उमूद हो के उफ़ुक़ में बदल रहे हैं सुतून

दहल रही है इमारत पिघल रहे हैं सुतून

बिना ही खोखली ठहरी तो क्या उरूज-ओ-ज़वाल

शिकस्तगी की अलामत में ढल रहे हैं सुतून

छतें तो गिर गईं शहतीर की ख़राबी से

ये किस का बोझ उठाए सँभल रहे हैं सुतून

हवा के रुख़ ने नया मर्सिया लिखा है जहाँ

भड़क उठी है वहीं आग जल रहे हैं सुतून

निदा है कैसी ज़मीं ऐ ज़मीं ख़बर तो ले

कि बंद कमरों का सब राज़ उगल रहे हैं सुतून

बदलते लम्हों को गिनते हुए हैं इस्तादा

नज़र का ज़ाविया कहता है चल रहे हैं सुतून

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In Hindi By Famous Poet Rauf Khalish. is written by Rauf Khalish. Complete Poem in Hindi by Rauf Khalish. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.