रीत तन्हाई फ़ासला सहरा
कौन सी भूक दे गया सहरा
उस की आँखों में बोलती नदियाँ
मेरे कानों में गूँजता सहरा
बदलियों ने लटें निचोड़ी थीं
प्यासा प्यासा मगर रहा सहरा
सब्ज़ शादाबियों के बदले में
कौन क़िस्मत में लिख गया सहरा
बैन करती हवा मुक़य्यद है
शहर-ए-मातम है ज़ात का सहरा