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कितनी सदियों से लम्हों का लोबान जलता रहा - रउफ़ ख़लिश कविता - Darsaal

कितनी सदियों से लम्हों का लोबान जलता रहा

कितनी सदियों से लम्हों का लोबान जलता रहा

उम्र का सिलसिला साँस बन कर पिघलता रहा

नापता रह गया मौज से मौज का फ़ासला

वक़्त का तेज़ दरिया समुंदर में ढलता रहा

बे-निशाँ मंज़िलें किस सफ़र की कहानी लिखूँ

थक गई सोच हर मोड़ पर ज़ेहन जलता रहा

अजनबी रास्तों की तरफ़ यूँ न बढ़ते क़दम

गर्द बन कर कई मेरे हम-राह चलता रहा

रुत बदलते ही दिल में नई टीस पैदा हुई

ज़हर-आलूद मौसम में इक दर्द पलता रहा

ज्ञान की आँच ने कर दिया मस्ख़ मेरा वजूद

या मैं बरगद के साए में ख़ुद को बदलता रहा

दाएरे से निकल कर भी मैं दाएरे में था क़ैद

फूल ज़ख़्मों के चुनता रहा हाथ मलता रहा

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In Hindi By Famous Poet Rauf Khalish. is written by Rauf Khalish. Complete Poem in Hindi by Rauf Khalish. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.