खिलौने की तड़प में ख़ुद खिलौना वो न बन जाए
मिरा बच्चा सड़क पर रेज़गारी ले के निकला है
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शर्तों पे अपनी खेलने वाले तो हैं वही
अगर अनार में वो रौशनी नहीं भरता
अब इस से पहले कि तन मन लहू लहू हो जाए
लुभा रही तो है दुनिया चमक दमक की मुझे
ना-ख़ुश गदाई से न वो शाही से ख़ुश हुए
धरती से दूर हैं न क़रीब आसमाँ से हम
रस्ते में तो ख़तरात की सुन-गुन भी बहुत है
ज़बाँ पे हर्फ़ तो इंकार में नहीं आता
कोई भी ज़ोर ख़रीदार पर नहीं चलता
दिल दुख न जाए बात कोई बे-सबब न पूछ
गिरफ़्तारी के सब हरबे शिकारी ले के निकला है
ता-ब-कै मंज़िल-ब-मंज़िल हम मुसाफ़िर भागते