ज़बाँ पे हर्फ़ तो इंकार में नहीं आता

ज़बाँ पे हर्फ़ तो इंकार में नहीं आता

ये मरहला ही कभी प्यार में नहीं आता

खुलेगा उन पे जो बैनस्सुतूर पढ़ते हैं

वो हर्फ़ हर्फ़ जो अख़बार में नहीं आता

समझने वाले यक़ीनन समझ ही लेते हैं

हमारा दर्द जो इज़हार में नहीं आता

ये ख़ानदान हमारा बिखर गया जब से

मज़ा हमें किसी त्यौहार में नहीं आता

हमारे हक़ में तो वो चाँद और सूरज है

बहुत दिनों से जो दीदार में नहीं आता

कमाल ये है कि हम ख़्वाब देखते ही नहीं

कि ख़्वाब दीदा-ए-बेदार में नहीं आता

हमारा शेर समझने की कुछ तो कोशिश कर

ये क्या नविश्ता-ए-दीवार में नहीं आता

क़लम की काट तो तलवार से भी बढ़ कर है

मगर शुमार ये हथियार में नहीं आता

वो अपना ज़ौक़ बढ़ाएँ अगर मज़ा उन को

रऊफ़ 'ख़ैर' के अशआर में नहीं आता

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In Hindi By Famous Poet Rauf Khair. is written by Rauf Khair. Complete Poem in Hindi by Rauf Khair. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.