आँखों प अभी तोहमत-ए-बीनाई कहाँ है
आँखों प अभी तोहमत-ए-बीनाई कहाँ है
तू ख़ुद ही तमाशा है तमाशाई कहाँ है
आईना हुई तिश्नगी पायाबी-ए-जाँ से
चेहरे प तो लिक्खी हुइ रुस्वाई कहाँ है
इन जागती आँखों को मिले धूप के बाज़ार
ऐ दिल वो पिघलती हुइ तंहाई कहाँ है
सुरज है कि बस नोक पे सूई की खड़ा है
अब फ़ुर्सत-ए-कम-कम भी मिरे भाई कहाँ है
ख़ूँ चूसते लम्हों से कहो हाथ पसारें
एहसास की सूरत अभी ज़रदाई कहाँ है
कुछ और बिखर कर कहीं पहचान न खो लूँ
इस शहर को मिटी मिरी रास आई कहाँ है
वो शख़्स बड़े चाव से कुछ पूछ रहा है
तू ऐसे में ऐ लज़्ज़त-ए-गोयाई कहाँ है
ख़ैर अपनों में इक हम ही नकुल आए हैं शाएर
शहज़ादगी-ए-शौक़ ये आबाई कहाँ है
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